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सफर - मौत से मौत तक….(ep-29)

समीर शाम को इशानी के घर पहुंचा, इशानी के मम्मी पापा भी मॉडर्न थे, इशानी के पापा बिजनेसमैन थे, जबकि इशानी की मम्मी हाउसवाइफ थी, समीर बहुत ही सलीके से कपड़े पहनकर गया, ब्लू जीन्स के साथ वाइट कमीज और ब्लैक कोट, साथ मे रेड टाइ भी बांधी थी। घर के अंदर आकर उसने देखा कि इशानी अपनी माँ के साथ खड़ी थी, और इशानी रोज की तरह ही बनी ठनी थी, नॉर्मल ही जैसे वो  मिला करते थे, एक सिंगलपिस गाउन डाला था, जबकी इशानी की मम्मी ने जीन्स टॉप डाली हुई थी। जिसे देखकर समीर थोड़ा सरप्राइज़ तो हुआ लेकिन फिर उसका ध्यान वापस इशानी की तरफ गया,
  इशानी ने अंदर आने को कहा और सोफे को सेट करते हुए बोली- "बैठो ना खड़े क्यो हो"

समीर इशानी की मम्मी के पैर छूते हुए प्रणाम करने लगा
इशानी की मम्मी स्नेहा बोली- "अरे बस बस….आजकल झुकने का रिवाज नही है, बस हाथ जोड़ दो काफ़ी है"

"झुकने से की घटता नही मम्मी जी, बचपन से जिसके आगे भी झुका हूँ उसने आशीर्वाद ही दिया है, और मैं आज जो कुछ भी हूँ ये आशीर्वाद का ही नतीजा है।" समीर ने संस्कारी होने का पहला तीर छोड़ा जो बिल्कुल सही निशाने के लगा।

"अरे वाह….बहुत खूब…." स्नेहा ने समीर के सिर को सहलाते हुए कहा।

समीर को गुस्सा तो बहुत आया, आधा घंटा लगाकर बाल सेट किये थे, सब बर्बाद कर दिया था, लेकिन फिर भी बहुत प्यारी स्माइल के साथ उसने स्नेहा की तरफ देखा और कहा- "मैं आपको मम्मी तो बोल सकता हूँ ना….वो क्या है ना बचपन से मम्मी नही देखी, ना कभी किसी को मम्मी के नाम से पुकारा, आज पहली बार आपको मम्मी बोलने में बहुत शुकुन मिल रहा है"

"क्यो नही बेटा….बिल्कुल बोल सकते हो…." स्नेहा बोली।

ये सब देख रहे नंदू अंकल को आज एक बार फिर गौरी की याद आयी,
"काश की तुम जिंदा रहती और मेरे बेटे से माँ बोलने का हक ना छिनती……देखो मेरा बेटा माँ बोलने के लिए तरस रहे था….लेकिन बेटा माँ बोलने मात्र से कुछ नही होगा, तुम्हे स्नेहा को माँ मानना भी पड़ेगा….और अगर तुम्हें इससे शुकुन मिल रहा तो ये खुशी की बात है"

समीर को प्यार से बिठाया गया, उसने शुरुआत में ऐसी ऐसी बाते कर दी कि रिश्ते के लिए ना नही कर पाया कोई….और आखिर इशानी की खुशी के लिए उसके मम्मी पापा कुछ भी कर सकते थे। स्नेहा के हाँ बोलने के बाद दिकम्बर यानि स्नेहा के पापा की नही बोलने की हीम्मत भी नही थी। स्नेहा की चलती थी घर मे, और दिकम्बर उसकी जी हुजूरी करता था। शायद उसका कोई बहुत बड़ा कारण हो सकता था, लेकिन फिलहाल तो समीर को दामाद बनने की मंजूरी मिल चुकी थी। उसके बाद सबने डिनर किया और समीर खुसगी खुशी घर की तरफ चल पड़ा।


****


"पापा.……वो लोग घर पर आना चाहते है, कब बुलाऊँ?" समीर ने मासूमियत से पूछा, जैसे हर काम पूछकर करता होगा।

"बेटा, तुम्हारा घर है, जब मर्जी बुला लो….मैं कौन सा मना कर रहा हूँ" नंदू ने कहा। शायद थोड़ा नाराजगी थी दिल मे….जो शब्दो से जाहिर हो रही थी।

समीर ने नाराजगी महसूस कर ली थी, मगर नजरअंदाज करना ठीक समझा….और अगले सण्डे का प्रोग्राम बनाया, और उसी दिन सगाई का भी प्रोग्राम बन गया।

नंदू थोड़ा निराश था, ना राजू को फोन कर या रहा था, ना राजू का खुद फोन आया, पहुंचने तक कि भी खबर नही दी उन्होंने…. नंदू शर्मिंदा था, उसे पता था कि राजू के दिल को ठेस पहुंची है, अपनी बेटी और मेरे बेटे के साथ मे होने की वजह से उसने अपना गुस्सा अपने पास रखा था, लेकिन अगर अब उसे फोन करूँगा तो वो दिल के सारे गुस्से को निकालने लगेगा, इसी डर से नंदू ने फोन नही किया, और खामोश रहा। और कहते है ना खामोशिया दूरियों को बढ़ाती है।  नंदू और राजू के बीच भी खामोशी पैर पसार चुकी थी।

अगले सण्डे को धूमधाम से शगायी हुई….शगायी में ढेर सर्व मेहमान थे लेकिन सब इशानी के दोस्त, इशानी के पापा डिकम्बर के दोस्त, और स्नेहा के दोस्त और इशानी के चाचा चाची…. उन सब के बीच थे समीर और समीर के दोस्त, समीर का आफिस का स्टाफ…. इस पूरी भीड़ में नंदू सिर्फ समीर को पहचानता था बस…. प्रोगाम इतना जल्दी सेट हुआ था कि तुलसी और सरला को खबर भी नही कर सका नंदू….उसे लगा बस घर देखने आ रहे होंगे, लेकिन घर मे तो सगाई होने लगी थी।
  समीर और इशानी ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाई , सब लोग तालियाँ बजाने लगे, तो नंदू भी सबका साथ देने लगा।
  अब सब एक एक करके  समीर और इशानी के पास जाकर फ़ोटो खिंचाने लगे। एक एक करके सब लोग आए और सबकी फ़ोटो खींची, लेकिन नंदू अभी तक नही गया, नंदू एक किनारे खड़ा बस तालिया बजाए जा रहा था, और अपने बेटे और बहू को देख रहा था।

तभी फोटोग्राफर ने आवाज देते हुए पूछा- "कोई रिश्तेदार रह तो नही गया ना….कोई छूट गया तो खिंचवा लो अभी।"

इशानी ने इधर उधर देखा..सबके चेहरे देखे और कहा- "हो गए सब…."
समीर भी इधर उधर देखने लगा, नंदू को लगा शायद उसे ढूंढ रहा है…. नंदू ने एक एक करके दो कदम आगे बढ़ाये,

"हाँ, मेरे ख्याल से सारे हो गए" समीर भी बोल पड़ा।

अब नंदू ने अपने कदमो को रोक लिया….लेकिन नंदू को इस बात का भी बहुत बुरा लगा….एक तरफ इशानी के सभी दोस्तो की, रिश्तेदारों की यहां तक कि उसके पापा के दोस्त स्नेहा के दोस्त और समीर का स्टाफ सभी की तरह तरह की तस्वीरें खींची गई, कुछ फोटो खिंचवाने के शौकीन खुद आगे आये तो किसी को खींच खींच के ले जाया गया। और दूल्हे के पापा की किसी को याद ही नही रही।

"शायद भूल गया होगा, या उसे लगा होगा खिंचवा ली मैंने, वरना समीर ऐसा नही करता" नंदू ने सोचा।

फोटोग्राफर ने कैमरा का शट डाउन किया और सभी को खाने के टेबल के पास जाने को कहा जो कि छत में लगा था।

तभी समीर की नजर अपने पापा पर पढ़ी….

" रुको…." समीर ने फोटोग्राफर से कहा।

"अरे शायद पापा की फ़ोटो तो खिंचवाई नही, पापा आप उधर क्यो खड़े हो….आओ ना…." समीर ने कहा।

"आओ ना प्लीज" समीर ने हाथ से इशारा किया।

अभी नंदू को ये समीर कोई बड़ा नही जबकि एक नौ साल का बच्चा नजर आया, नंदू फ्लैशबैक में गया, जब एक मेले में नंदू समीर को घुमाने ले गया था। मेले में कैमरा लेकर कुछ लोग घूमते थे, जो फ़ोटो खींचकर साथ के साथ प्रिंटआउट निकालकर दे देते थे। नंदू ने समीर की जिद पर उसकी एक फोटो खींचने को कहा….
फोटोग्राफर ने नंदू को सामने रखे पर्दे के पास खड़ा किया, और खुद उससे कुछ कदम पीछे खड़ा हो गया और नंदू फोटोग्राफर के पीछे खड़ा होकर समीर को मुस्कराने के लिए बोलने लगा।
"सीधे खड़े हो जाओ बेटा" फ़ोटो ग्राफर बोला।

"आप भी आ जाओ ना पापा" समीर बोला।

नंदू ने ना मैं सिर हिलाया और उसे सीधे खड़े होकर स्माइल करने को बोला,
लेकिन समीर बार बार पापा को बुला रहा था,
"पापा प्लीज ….आप भी आ जाओ ना" हाथ से इशारा करते हुए समीर बोला।

नंदू ना मैं सिर हिला रहा था तो समीर खुद आकर पापा को खींचते हुए ले गया।

अभी इस वक्त भी नंदू पुरानी यादों में खोए हुए ना मैं सिर हिला रहा था।  तभी समीर आया और पापा के हाथ खिंचकर उन्हें आगे ले गया और अपने और इशानी के बीच मे खड़ा कर दिया।
नंदू ने भी पुरानी यादों से बाहर आते हुए दोनो के कंधे में हाथ डाला और नम आंखों से मुस्करा दिया। फ़ोटो में भी नंदू के आंखों में पानी साफ चमक रहे थे, और होंठो की हंसी ने उन गम के आंसुओं को खुशी के आंसू में तब्दील किया हुआ था।  लेकिन फ़ोटो बहुत खूबसूरत आयी थी।


****


कुछ दिन बाद-----

नंदू ने अपनी दोनो बहनों को एक महीने बाद उसके घर मे हो रही शादी का निमंत्रण मोबाइल से फोन करके दिया।

"हां….हां….जरूर आना, और मास्टर जी को भी लेते आना" नंदू ने सरला दिदी से कहा।

"तू उनको जिजाजी बोलना कब से शुरू करेगा, अब तो रिटायर्ड होने वाले है वो, इस बार उनको मास्टरजी नही जिजाजी बोलना नही तो मार खायेगा मेरे हाथ से" सरला ने डांटते हुए कहा।

"ठीक है, ठीक है, इस बार मास्टर जी को जिजाजी कहना है, याद रखूंगा, अच्छा अभी है कहाँ, बात तो करा दे, जिजाजी से" नंदू ने कहा।

"वो नहा रहे है, इतनी सुबह सुबह फोन कर दिया तूने, मैं तो घबरा ही गयी थी, लेकिन अच्छा हुआ खुशखबरी ही सुनाई, कोई ऐसी वैसी बात नही बताई, तुझे बहुत बहुत बधाई हो, अब बहु जो लाने वाला है घर मे" सरला ने कहा।

"बधाई तो शादी में आकर देना, दूर की बधाई मुझे नही चाहिए" नंदू बोला।

"जरूर आऊंगी…. " सरला ने कहा।

"अच्छा ठीक है, अब मैं तुलसी को कर लेता हूँ फोन, अभी से बोल दूँगा तो आने की तैयारी कर लोगे आप लोग, हफ्ता भर पहले आ जाना, सारी तैयारियां आपने ही करनी है।" नंदू ने कहा।

"ठीक है भाई, ठीक है….आ जाऊंगी….और तुलसी को भी कह देना… ऐसा मौका कौन सा बार बार मिलेगा…." सरला ने कहा।

सरला से बात करने के बाद नंदू ने तुलसी को भी निमंत्रण दिया। दो ही लोग थे जिसे वो निमंत्रण दे रहा था। बाकी कोइ नही था।
थोड़ी देर में नंदू को राजू की याद आयी, उसने राजू को निमंत्रण देने के लिए फोन किया, लेकिन राजू ने फोन नही उठाया, कारण भले जो भी रहा हो…. लेकिन नंदू ने दो महीने बाद फोन किया था तो हो सकता है राजू ने इसलिए भी ना उठाया हो कि हमे विदा करने के बाद खैरियत भी नही पूछी, और फोन भी नही किया, एक बार ये तक नही पूछा कि ठीक से घर पहुंचे भी या नही।

समीर और इशानी के लिए एक महीना इंतजार करना बहुत मुश्किल था, एक दिन भी नही मिलना अब खलने लगा था।  रोज शाम को इशानी सैर करने घर से बाहर गार्डन में आती थी और समीर आफिस से घर जाते समय उस गार्डन से होते हुए आता था। थोड़ी देर एक साथ बैठते और फिर अपने अपने घर को चले आते।
लेकिन नंदू के लिए महीना बर्फ की तरह पिघलते हुए खत्म हो गया और तुलसी और सरला भी शादी की तैयारी करने आ पहुंचे।

शादी की तैयारी क्या करना था, कौन सा किसी के लिए शॉपिंग करनी थी, समीर के लिए करना था तो वो तो इशानी के साथ मॉल जाता था, उसकी पसंद के जूते, चश्मा, कपड़े, यहां तक कि रुमाल और मोजे भी इशानी ने पसंद किए। और नंदू के लिए भी अच्छे कपड़े ख़रीदवाये गए।  पूजा की सामग्री का तो पंडित जी को ठेका दे दिया, और टेंशन फ्री ही गए। घर मे डेकोरेशन वाले आये, हल्का फुल्का डेकोरेट किया, क्योकि शादी तो होटल में होनी थी, होटल का खर्चा लड़की वालों ने उठाया था। उनके पास भी पैसो की कमी नही थी। नंदू शादी की भागादौड़ी में था। कभी पंडितजी को फोन करो तो कभी दूल्हे की कार को डेकोरेट करने वाले को बुलाओ। कुछ मेहमान और कुछ पड़ोसी और समीर के दोस्तो की टोली ने एक बारात का रूप ले लिया था। बस इंतजार था तो बैंड बाजे का।

थोड़ी देर में दूल्हे की सजी धजी कार और बैंड बाजे वालें भी आ पहुंचे, देर ना करते हुए बारात घर से निकल पड़ी। और सीधे जा पहुंची होटल में, होटल में बारात का स्वागत हुआ और सभी रस्मो के साथ शादी होने लगी।

होटल के बाहर एक सुंदर से गार्डन था, नंदू तो अंदर बेटे की शादी में मग्न था, खुश भी था। उसने सब स्वीकार लिया था, क्योकि  जो होना था वो हो ही रहा था चाहे वो हां बोले या ना……
लेकिन नंदू अंकल (नंदू की आत्मा) का मन नही था शादी को देखने का, इसलिए नंदू अंकल बाहर आकर बैंच में बैठ गए। बैठे बैठे जब थकने लगे तो वही बेंच पर अपने ही हाथो का सिराहना (तकिया) बनाकर उसमे  सिर रखकर लेट गए। अब बीती बाते सोचने से कोई फायदा नही था इसलिए उन्होंने आगे बढना उचित समझा, कुछ दिन तक घर मे सब ठीक था।

नंदू अंकल ने सीधे उस दिन से कहानी स्टार्ट की जब समीर और इशानी पंद्रह दिन घूम फिरकर वापस घर आये। क्योकि नंदू की जिंदगी का अंतिम चरण यहाँ से शुरू हो चुका था।

कहानी जारी है

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4 Comments

Swati chourasia

10-Oct-2021 08:40 PM

Very nice

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Seema Priyadarshini sahay

02-Oct-2021 11:23 PM

बहुत खुबसूरत

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Fiza Tanvi

28-Sep-2021 06:39 PM

Bahut achi

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